गुरुवार, 26 नवंबर 2009

आलेख : प्रकृति के सानिध्य में स्वस्थ जीवन

आलेख : प्रकृति के सानिध्य में स्वस्थ जीवन

ग्वालियर 25 नवम्बर 09। प्रकृति, प्रकृति हमारी माँ है। भगवान ने हमें बनाने से पहले प्रकृति बनाई। जिससे वह हमारी सुरक्षा (केयर) कर सके। जिस प्रकार एक बच्चे की सुरक्षा मां करती है।

      प्रकृति कभी बीमारी पैदा नहीं करती। मुनष्य अपनी गलत जीवन शैली, गलत भोजन, गलत आदत, गलत स्वभाव के कारण बीमार होता है। प्राकृतिक रूप में रहने वाले कोई भी जानवर कभी बीमार नहीं होते। जैसी जीवन शैली पशु पक्षिओ की होती है वैसा भोजन और जीवन बनाने की अगर हम कोशिश करेंगे तो हम भी स्वस्थ रहेंगे।

      प्रकृति का पहला सिध्दांत है परिश्रम युक्त जीवन। जिसका पालन पशु पक्षी करते हैं। आसमान में पक्षी कोसों दूर तक उड़ते रहते हैं फिर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार जानवर भी एक स्थान से दूसरे स्थान तक मीलों चल कर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। प्रकृति भी हमें मेहनत करना सिखाती है। जिस प्रकार पेड़ के पत्ते हमेशा हिलते रहते हैं। नदी का पानी हमेशा बहता रहता है।

      अगर नदी का पानी बहना छोड़ दे तो तालाब बन जायेगा और तालाब में स्वत: ही कीटाणु पैदा होने लगते हैं। और तालाब का  पानी पीने योग्य नहीं होता जबकि नदी का पानी पीने योग्य। मेहनतयुक्त जीवन जीने  वाले का जीवन जीने योग्य होता है। बैठा जीवन जीने वाले के शरीर में अपने आप कीटाणु पैदा हो जाते हैं और बीमारी जीवन को घेर लेती है।

      बीमारी से दूर रहने के लिये हमें प्रकृति का ही सहारा लेना चाहिये। मिट्टी शरीर में से सारे विजातीय तत्व खींच लेती है इसलिये प्राकृतिक चिकित्सालयों में मिट्टी का लेप किया जाता है। हमारे पूर्वज किसान, माली या कुम्हार होते थे। तो उनका मिट्टी से संपर्क बना रहता था और वे स्वस्थ बने रहते थे। इसलिये महीने में एक बार पूरे बदन पर काली मिट्टी का लेप करें और सुंदर दिखें।

      पृथ्वी (धरती) स्वयं एक बहुत बड़ा लौह चुंबक है। जमीन पर सोने से हमें लौह चुंबकीय शक्ति मिलती है। इसलिये कम से कम एक घंटे हमें धरती पर सोना चाहिए। जमीन उबड़-खाबड़ होती है उसी कारण जमीन पर सोने वाले सभी जानवरों के सारे पॉइन्टस दब जाते है। नारियल के पत्तों की चटाई बिछाकर सोने से अपने आप एक्युप्रेशर चिकित्सा हो जाती है।

      पानी पृथ्वी का अमृत है और स्वास्थ्य के लिये सबसे जरूरी तत्व है। पानी के द्वारा शरीर की सफाई होती है। पूरे दिन में 15 से 20 ग्लास पानी पीने से शरीर का कचरा निकल जाता है। भूखे पेट पानी पीना चाहिये और भोजन के दो घंटे बाद पानी पीना टॉनिक के समान है। भोजन करते समय पानी नहीं पीना चाहिये। सुबह खाली पेट पानी पीना अमृत जैसा है। पशुपक्षी पानी में, तालाब में बैठते हैं। पानी में भी ऐसी शक्ति है, जो शरीर के विजातीय तत्वों को खींच लेती है। हमारे पूर्वज नदी तालाबों में नहाते थे, बारिश में भीगते थे तो उनकी पानी से चिकित्सा हो जाती थी। इसलिये माह में एक बार कम से कम आधा घंटा पानी में बैठें और रोगों को दूर भगायें।

      शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। चार तत्व भोजन, पानी, हवा, अग्नि तो हमें मिल जाती है पर पांचवा तत्व आकाश तब तक नहीं मिलता जब तक हम उपवास नहीं करते। सभी जानवर भी उपवास करते हैं। पशुपक्षी जब भी बीमार  होते हैं खाना छोड़ देते हैं। प्रत्येक धर्म में भी उपवास की परंपरा है। सप्ताह में एक दिन उपवास करने से शरीर को भोजन पचाने में आसानी होती है और शरीर स्वस्थ रहता है।

      पशु पक्षी सूरज की रोशनी में दिनभर रहते हैं इसलिये वे कभी बीमार नहीं पड़ते। मनुष्य चार दीवारों के बीच सूर्य का प्रकाश न पाकर बीमार पड़ता है। इसलिये सुबह की सूरज की रोशनी मनुष्य को अवश्य लेनी चाहिये। छोटे बच्चों को सुबह की धूप दिखानी चाहिये जिससे उनकी हड्डियां और दिमाग मजबूत होता है। बड़ों को भी सूरज की रोशनी में सूर्य नमस्कार करना चाहिये। जानवर वहीं पानी पीता है जिसमें सूर्य की किरणें पड़ीं हों। हमें भी घर का मटका घर के आंगन या सूरज की रोशनी में रखना चाहिये। पानी पीने से शरीर में सात रंगों का बेलेन्स हो जाता है।

      हम स्वच्छ पानी पीते हैं, साफ सफाई से रहते हैं, कई तरह की सावधानी बरतते हैं फिर भी रोगग्रस्त हो जाते हैं परंतु हम जानवरों को देखें तो वे स्वस्थ रहते हैं क्योंकि उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता अत्यंत बलशाली होती है। कारण यह है कि वे नंगे पैर चलते है तो उनके पंजों के पाइंट कंकर, पत्थरों से दबते रहते हैं। एक्युप्रेशर सिध्दातों के अनुसार शरीर के सभी आंतरिक अवयवों के बिंदु या तो पंजों में या पैर के तलवों में स्थित होते  हैं।

      ज्यादातर पशुपक्षी शाकाहारी ही है और वे स्वस्थ रहते हैं। चावल की भूसी, गेहूँ का चोकर, सब्जियों के डंठल, फल, सब्जियों के छिलके इन्हें हम कचरा समझ कर गाय, बकरी को खिला देते हैं। यह चोकर बहुत ही पौष्टिक होता है, पेट साफ करने वाले होते है, पर हम मैदा (चोकर से निकला आटा), पॉलीश किये हुए चावल, रीफाइण्ड तेल, पॉलिश की हुई दालें, अनाज, छिलके उतारी हुई सब्जियां और फल खाते हैं। सभी चीजें छिलके सहित खाने से हम स्वस्थ रहेंगे।

      पशु पक्षी कच्चा ही खाते हैं पकाकर नहीं। कच्चा भोजन जीवन के लिये शक्ति से भरपूर होता है। शायद इसलिये चिकित्सालयों में कच्चा भोजन रोगियों को दिया जाता है। कच्चा सलाद, फल, अंकुरित दालें, अनाज, नारियल, सोयाबीन का दूध, खजूर, गेहूँघास, गोमूत्र आदि। जानवर जीभ के स्वाद के लिये नहीं खाते, मनुष्य जीभ का गुलाम है। दो इंच की जीभ छह फुट के शरीर को बीमार बना देती है। सभी धर्मों में भी अस्वाद भोजन की परंपरा है। कम से कम हफ्ते में एक दिन कच्चा भोजन या बिना मिर्च, मसाला का अस्वाद भोजन जरूर लेना चाहिये।

 

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