गुरुवार, 8 मार्च 2012

हास्य व्यंग्य - बुरा न मानो होली है .... उड़त गुलाल लाल भये बदरा .... बात कहूँ मैं खरी नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’आनंद’’

हास्य व्यंग्य
बुरा न मानो होली है
कहत कबीर सुनो भई साधो .... बात कहूँ मैं खरी
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनंद''
होली की चार लाइना : बुरा न मानो होली है ..... होली सदा मनाईये परनारी के संग, भौजी हो या साली हो या होवे कोई पतंग, जो साली खुद की ना हो तो उधार लीजिये, नहीं मिले भौजी तो जरा कोई खोजिये, बिन पिये होली का मतलब कोई नहीं होवे, दारू लेओ खींच संग सिगरेट के छल्ले, थोड़ा सा नमकीन, गांजा संग में खेंचो, जरा हुस्न कयामत वाला संग, संग में भंग की बल्ले...  मनमोहन ने लिख दिया इस्तीफा आडवाणी के नाम, कहा बड़े ही प्रेम से लो अब तुम कर लो अपना काम , आडवाणी जी कह रहे लूट में पड़ गई फूट, अब नहीं हमारे रहे अब हमारे संग, तुम ही अब संभाले रहो कमीशन बस मिलता रहे है यही हमारी मांग, कर्नाटक में चल गई जब फिल्म एक मदमस्त, अब मिनिट्री सोच रही हर नेता क्यूं नहिं देखे फिल्म यही मदमस्त , लालू जी लगा रहे मुलायम को लाल लाल गुलाल, कछू गालों बीच फंस गये मुलायम अँगूठा गये चबाय, आडवाणी दौड़े गये मनमोहन के पास, लाये रंग गुलाल के जरा आओ हमारे पास, मनमोहन कहने लगे, जा रे हट नटखट, ना खोल मेरा मुँह फट, जो ला दूं गुलाल मैं हो जाओगे बेहाल तुम, हम जानते हैं तुझे, तुम रहे हो मरखन चोर, आडवाणी कहने लगे, दिन बीत गये बहुत अब, क्यूं पुरानी याद दिलाते हो, हमें हमारी सब आदतें याद दिला क्यूं  तड़पाते हो, ध्रुव और जाहिदा मिले लिये हाथ में रंग, कहते रंग नहीं रंगीन, मन तेरी मांग सजाने का, जाहिदा कहने लगी ले आओ बारात क्या रस्ता देखा नहीं है थाने का , रामदेव मिलने गये सिब्बल जी के पास, हाथ लिये गुलाल थे कातिल जैसे लाल थे, सिब्बल जी कहने लगे आओ महारथी आओ जरा, क्यूं मन है आज उदास, क्या लंहगा चोली कम पड़ गये जो फिर रहे आज उदास, चलो आओ इक टेंट फिर तनवा लो, अबकी बार लंहगा चोली का पूरा सूटकेस ले जाओ, रामदेव हँसने लगे बोले सिब्बल नहीं यार वो बात , हम तो मांग भरवाइबे आये तुम्हरे पास, देखो हम ले आये हैं सिन्दूरी लाल गुलाल, विधवा से हम फिर रहे तासों भये उदास .....    
 
लाल कृष्ण आडवाणी
बूढ़ा शेर दहाड़ता जब जाके बीच मैदान, ज्यों मुर्दा कब्र फाड़ता मावस के दरम्यान
कब्र ऐसी बनाईये, रथ उस पर रखवाईये जाने कब जग जायेगा मुर्दे का शमशान
रात दिन चिल्लायता, पॉंव फेंक फेंक नर्रायता, अबे दे इस्तीफा, इस्तीफा दे बस मांगता
बिना कटोरा हाथ ले, राम का बस जो नाम ले, दे राम के नाम बस पी.एम. कुर्सी मांगता
 
राहुल गांधी
बहुत गई थोरी रही, थोरीहू अब जाय, सेहरा लपक सजाईये मंडप लपको धाय
कछू नसीब तो जागिहे, सारी बातें बानिहें, बहू जब जो मिले हिल मिल दोऊ नसीब
कछू तो बिगरी बानिहै, कछू नई चीज तो आइहै जब होंवें दुल्हनियॉं तोहि करीब
पीस पीस कर रात भर पूरा पारी दिया सकेल , हाथी को पहरा दई दे वनवास नकेल
हाथ ने दे थप्पड़ हाथी को भगाय दिया, हाथ ने ही चढ़ाय दई साइकिल खूब धकेल
 
बाबा रामदेव
आगरे ते घांघरों मंगाय दे रसिया , मैं तो मेला देखन जाऊंगीं, रे मैं तो रामलीला देखन जाऊँगीं
हाय रे बलमा रंग रंगीलो, सिब्बल गबरू खूब सजीलो, चिदंबरम पे मैं मर मर जाऊँ,
धर अकबर का रूप गई थी, जोधाबाई बना के मुझको, सजना ने डोली बिठलाया,
भूल न पाऊँ वो दिन अब तक जब बॉबी डाल्रिंग मुझे बनाया
तलवार फेंक के जब मैंने अपनी थी सलवार निकाली, योग जोग सब मैंने छोड़े, साड़ी पहनी मांग सजाई,
सीटी मारी, ऑंख भी मारी, लगा मंच पर ठुमके कईयों, खूब रिझाया पुलिस को मैंने, दिल्ली पुलिस को लाइन भी मारी
अब फिर मौसम आये मोहब्बत के, 2014 में बारात निकालूं , फिर से इज्जत मैं लुटवाऊँ , पास तुम्हारे फिर से आऊँ
टर्न ओवर मेरा 1100 करोड़ का, अर्न ओवर है भाग जाने का, पिट कुट बेशरम मैं बन जाऊँ, सैंया तोहरे पास मैं आऊँ
आगरे ते घांघरो मंगाय दे रसिया .....
 
दिग्विजय सिंह
हमको मिटा सके जमाने में ये दम नहीं, जमाना खुद ब खुद हमसे है, जमाने से हम नहीं
हम मिटा देते हैं खुद को भी दुश्मन अगर जो मिटता हो, हम कर लेते हैं एक तीर से से दो शिकार, हाथी हो या फूल कमल का हो
अब उस हाल में जीना लाजिम है , जिस हाल में जीना मुश्किल है, क्या हुआ जो हुआ चंद बंद बाजार हुये, अपना तो उसी गली में आना जाना आज भी है
वह बेवफा निकली तो क्या, दूसरी तलाश लेंगें , घोड़ी तो हम चढ़ेंगें ही, सेहरे भी सजायेंगें, बारात नहीं हो न सही, दुल्हन रजामंद न सही दूल्हे तो हम बनेंगें ही
अरे बच कर रहना इन कमल और संघीयों से, बहुत कुत्ते कमीने हैं, काम सियार का करते हैं, राजा जब निकलता है, गीदड़ हू हू करते हैं
बम बनाना पेशा इनका, रोज धमाके करते हैं, बहुत कुत्ते कमीने हैं, फंदा जब भी कसता है इक नई चाल ये चलते हैं
चाहे बचें जितना चाहे, बच नहीं ये पायेंगें, मिट्टी पलीद हम कर देंगें इन्हें सबक बस हम सिखायेंगें
 
चचा येद्दियुरपा
नंगा नहाया, रात भर जागा, काला जादू भी कटवाया, पर ससुरी किस्मत पूरी फूटी फिर भी न मैं बच पाया
सदानंद करे आनंद सदा कुर्सी पे जो चिपका है, जब भी वापस कुर्सी मैं मांगू दो चार केस ही चिपका है
देख ही लूंगा सबको अब मैं आने दो जरा चुनावों को, बदला लूंगा मैं गिन गिन के डुबो दूंगा इन नावों को
बीच मंझधार जो नहीं डुबोया चचा हमारा नाम नहीं , सदानंद को सदा बचाना अब हमारा काम नहीं
 
नितिन गड़करी
बीजेपी मुटियाय रही , चरबी गई थी छाय, आपरेशन कराय लियों कछू दुबले ही होइ जाय
मेहनत सब बेकार गई, हेलीकॉप्टर उलझ गयो फंस कर बीच पंडाल
चप्पा चप्पा नहीं खिल सका कमल मेरा मुरझा गया, हुआ बहुत बुरा है हाल
हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम, पता ही नहीं चला और बातों बातों में चुनाव गुजर गया
पता नहीं किससे लड़ रहे थे , साले दुश्मन हजारों थे, रट रट जाते भूल जाते थे, जो तराने हमारे थे
सबको खूब गरिया दिया, सारी भड़ास निकाल दिया, क्या हाथी हाथ और साइकिल क्या सबका फूल बनाय दिया
फूल नहीं जनता बन पाई, फूल नहीं अबकी खिल पाई, जरूर मुसलमानों की ये चाल है,
आ जाना फिर से गोधरा में बतायेंगें फिर से हम कि हम क्या क्या गोल गोल माल हैं
 
सोनिया गांधी
ओछी हरकतें कर रहे विपक्ष के परिंदे ये, खुद को खुदा समझ रहे कैसे हैं दरिंदे ये, खुद भी हारते हैं ये हमें भी हराते हैं ये,
तीसरा फायदा ही उठाता है, समझ नहीं पाते हें ये, कैसे नादानों से पाला आज पड़ गया, मसखरी करते सदा कितने मसखरे हैं ये
काना कभी पकड़ लिया, कभी जनम का भूखा पकड़ लिया, सदा ही दिल्ली दिल्ली की रट क्यूँ लगाते हैं ये,
बिल इनने क्यूं नहीं बनाया कभी, पास क्यूँ न कराया कभी हम पे बिल न पास करने के आरोप क्यूं लगाते हैं ये
चंट बहुत है खोपड़ी, सदा बंदरों सा उछला करें, हम हैं कि इन्हें सरकस में डाल डाल आते हैं, अब क्या करें इनका ये भाग भाग आते हैं
अमरीका जाकर खोज रही जुरासिक पार्क मिले कोई ढंग का, जहॉं जा इन्हें भर्ती कराऊँ, कैसे कैसे अजूबे हैं असर नहीं किसी रंग का
भगवा पहनते कभी, कभी रम से राम कहते हैं, कभी कभी तो ये चार धाम करते हैं, गंगा एक बहाना है, बस सत्ता इनको पाना है,
राम मंदिर फेल हो गया अब गंगा पुकारा करते हैं, दूर है बहुत चुनाव अभी ये चुनाव रोज डकराते हैं , क्या करे ये इस्तीफा टॉफी जैसा मांगा करते हैं
 
शिवराज सिंह
मैं बेचारा, इक अलबेला , नई नारि और संग में छैला, बेटी खुद मेरे नहीं पर फिरता बेटी मैं बचाता
मेरी सेना, बागी सेना, इक ठाकुर है कटे हाथ का, इक बुढ्ढा बड़बोला,
इक झा पंगेबाज पुराना, इक मिश्रा डाकू सुल्ताना, दूजी चढ़ी गढ़ी अजय की
इक डी है और जाहिदा, कितने इश्क करे ठाकुर ने, सबको फिरता मैं सुलझाऊँ
मैं उलझन में, फिरूं लगन में, पूरी सत्ता बेचूँ खाऊँ, कैसे अपना पिण्‍ड छुड़ाउँ
मैं बेचारा, गम का मारा, फिरता ढूंढ़ूं घर और द्वारा, कैसे अपनी जान बचाऊँ
जितना घर में उतना बाहर, घिरा दो पाटों बीच में, कैसे पिसने से बच पाऊँ
 
अजय सिंह राहुल
आरोंपों की है सरकार , आरोपों के मेले हैं, जवाब नहीं है किसी बात का कहते सब झमेले हैं
सारे चोर इकठ्ठे हो कर करते संग संग चोरी हैं, हर मंत्री से चिपकी बाला, सबके संग संग चिपकी गोरीं हैं
खनन भराई , चोरी और उठाई गीरी, धंधे इनके काले हैं, भोले भाले चेहरों वाले बहुत बड़े ये शातिर हैं
रखते मुँह में राम, रम रखते जेबों में सारे, बगल में छुरी धरे बैठे हैं, बगुला भगत सब ये सारे हैं
 
प्रभात झा
पंगा हमसे लेना नहीं , डेंजर अपना यार पुराना है , गलबहियों की यारी अपनी, फोटू बहुत पुराना है
छोटा बच्चा समझ के हमको मत धमकाना रे, हर फरारी यार है अपना ये छोटू बहुत पुराना है
हम वो जालिम हैं  यार कि डस लें जिसे पानी तलक वो फिर ना मांगें, मत फन को छड़ो हमारे, हम जो फुफकारें तो सांस तलक कोई फिर ना मांगे
फंस से गये हम हैं , अपने बुने जाल में, लोग सोचते हैं ऐसा मगर हम जाल बुनते रहते हैं कितना फंसेंगें हम ये हम देखें, कब तक नहीं फंसोंगे हमारे बुने जाल में
क्यूं छेड़ते रहते हो हमको यार हम बुढ्ढे हैं , नहीं रही हमारी उमर अब हसीनों के संग नाचने की,
नहीं क्यूं मानते हो यारो नचाते क्यूं रहते हमको हो, अब ये नहीं कमरिया रही लचकने की
फिर भी हम नाचा करते हैं बस यही अदा हमारी है, ढिशुम ढिशुम करते हो देखो दांत नकली हैं, जरा बच के चलाना हाथ, बस ये गाल हमारे असली हैं
 
  
                   
 
             
       
   
                                 
  
   
 

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